मैं ऐसा भारत चाहता हूं जहां भय का ऐसा वातावरण न हो जैसा आज चारों तरफ छाया है, जहां उत्पादन या व्यापार के कठिन कार्य में लगे ईमानदार लोग अधिकारियों, मंत्रियों और पार्टी आकाओं के हाथों बर्बाद होने के भय के बगैर अपना काम कर सकें।
मैं ऐसा भारत चाहता हूं जहां प्रतिभा और ऊर्जा के फलने-फूलने की पूरी गुंजाइश हो, इसके लिए विशेष मंजूरी हासिल करने की खातिर उन्हें अफसरों और मंत्रियों के आगे एड़ियां न रगड़नी पड़ें, और जहां भारत और विदेश का खुला बाजार उनके प्रयत्नों का मूल्यांकन करे।
मैं चाहता हूं परमिट-लाइसेंस राज का घना कोहरा हमारे सीने पर न बैठा रहे। मैं चाहता हूं इस परम शक्तिशाली राज्यवाद से मुक्ति मिले और सरकार के हाथों में सिर्फ इतनी ताकत हो जो उसके उचित कार्यो के लिए जरूरी है।
मैं चाहता हूं कि हमें सरकारी व्यवस्था के नाकारापन से मुक्ति मिले और निजी प्रबंधन की प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था मामलों को संभाल सके।
मैं चाहता हूं कानून और नीतियों का लागू करने के लिए नियुक्त अधिकारी सत्तारूढ़ पार्टी के आकाओं के दबावों से मुक्त हों और उनमें वही निर्भीक ईमानदारी बहाल हो जो कभी उनमें हुआ करती थी।
नेहरू ने कहा कि परमिट मांगने के लिए कोई भी आदमी आज तक उनके पास नहीं आया। सही है। लेकिन उनके पास 150 मंत्रियों और अनगिनत पेशेवर कांग्रेसियों की फौज है, जो कोटा और परमिट दिलाने में लोगों की मदद के इस नए व्यवसाय में लगी है।
मैं चाहता हूं सभी को असलियत में बराबर के अवसर मिलें और परमिट-लाइसेंस राज के जरिये निर्मित निजी एकाधिकारवाद खत्म हो।
मैं ऐसा भारत चाहता हूं, जहां किसानों को धमकाकर या फुसलाकर उनकी जमीनें देने के लिए मजबूर नहीं किया जाए. ताकि सहकारी खेती के जरिये हवा में किले बनाए जा सकें।
मैं संपत्ति, जमीन व अन्य सभी मिल्कियतों के स्वामित्व की सुरक्षा चाहता हूं ताकि उनके ऊपर हमेशा खतरे की तलवार न लटकी रहे कि उनकी संपत्ति या जमीन कभी भी हथिया ली जाएगी, वह भी न्यायिक प्राधिकार द्वारा सही सिद्धांतों के आधार पर तय न्यायोचित व पूर्ण मुआवजा दिए बगैर, महज राजनीतिक विधान के आदेश पर।
मैं चाहता हूं कि मूलभूत अधिकारों को उनके मौलिक रूप में बहाल किया जाए और उन्हें अक्षुण्ण रखा जाए।
मैं ऐसा भारत चाहता हूं जहां भारी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर निजी पूंजी के निर्माण में बाधा न बनें और इस तरह उद्यमशीलता और पहल को हतोत्साहित न करें।
मैं ऐसा भारत चाहता हूं जहां केंद्र का बजट मुद्रास्फीति और महंगाई को बढ़ाने वाला न हो।
मैं ऐसा भारत चाहता हूं जहां सरकार पूंजी निवेश पर कर लगाकर वर्तमान पीढ़ी की जिंदगी को मुश्किल न बनाए।
मैं चाहता हूं बड़े बिजनेस की धनशक्ति को राजनीति से अलग रखा जाए। लोकतंत्र का विकास वैसे भी कठिन कार्य है, इसे धन-बल से बर्बाद नहीं होने दिया जाए और महंगे चुनावों से प्रहसन में नहीं बदला जाए और बड़े बिजनेस विशेष सुविधाओं के बदले में या राज्य व्यवस्था के नियामक अधिकारों के भय से सत्तारूढ़ पार्टी को धन-बल से सहायता न करें.।
मैं चाहता हूं उदारता और परोपकार की भावना को खुलकर खेलने की जगह मिले, ऊंचे व बहुत ज्यादा करों, अति-केंद्रीयकरण और कल्याणकारी योजनाओं पर सरकारी एकाधिकार के माध्यम से इसका गला न घोंटा जाए।
मैं चाहता हूं कि सरकार को उसकी सीमाओं का पता हो और वह विनम्रता से अपने कामों को अंजाम दे। साथ ही नागरिक उत्तराधिकार में प्राप्त पारंपरिक माध्यमों से आध्यात्मिकता का अनुभव करे।
मैं चाहता हूं कि सत्ता में चाहे जो पार्टी हो, उसके विरोध में एक मजबूत पार्टी अवश्य रहे, ताकि लोकतंत्र के पहिये सीधी सड़क पर सुगमता से दौड़ सकें।
मैं ऐसा भारत चाहता हूं जो विदेशों में अपनी नैतिक ऊंचाई दोबारा हासिल कर सके और मैं नहीं चाहता कि हमारी जनता को इस धोखे में रखा जाए कि गांधी जी के समय में जो नैतिक सत्ता हमने हासिल की थी, वह अब भी बरकरार है।
{सी राजगोपालाचारी के 1961 में लिखे एक निबंध से }
Monday, November 1, 2010
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बहुत अच्छा लिखा आपने....
ReplyDeletesparkindians.blogspot.com
दीपावली का त्यौहार आप, सभी मित्र जनो को परिवार को एवम् मित्रो को सुख,खुशी,सफलता एवम स्वस्थता का योग प्रदान करे -
ReplyDeleteइसी शुभकामनओ के साथ हार्दिक बधाई।
इस सुंदर से नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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